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श्री साईं सच्चरित्र संदेश
"तुम्हें अपने शुभ अशुभ कर्मो का फल अवश्य ही भोगना चाहिए I यदि भोग अपूर्ण रह गया तो पुनजन्म धारण करना पड़ेगा, इसलिये मृत्यु से यह श्रेयस्कर है कि कुछ काल तक उन्हें सहन कर पूर्व जन्मों के कर्मों का भोग समाप्त कर सदेव के लिये मुक्त हो जाओ" I
"जो मुझे प्रेम से पुकारता है उसके सन्मुख मै अवलिम्ब प्रगट हो जाता हूँ" |
Monday, October 31, 2011
Friday, October 28, 2011
Thursday, October 27, 2011
How Shri Sai Leela Magazine Came Into Existence
रविवार, १,९१२ (लगभग) में, श्री गोविंदराव दाभोलकर ( साई सत्चरित्र के लेखक जो हेमाडपंत के नाम से लोकप्रिय है.) साई सत्चरित्र के कुछ अध्याय को पूरा करने के बाद मेरे पास आये. उनमें से मैं दो अध्याय मुझे इतने पसंद थे कि मैंने उनसे अनुरोध किया कि उन्हें प्रकाशित किया जाये . इसके अलावा, हमें यकीन नहीं था कि लोगों को केवल एक पुस्तक में संकलित साई बाबा की सभी लीला पसंद आयेगी . इसके अलावा अगर सब लीला एक साथ प्रकाशित करते , तो मुद्रण ( प्रिंटिंग ) की लागत बहुत अधिक होगी इसलिए, यह निर्णय लिया गया है कि शुरुआत में, एक मासिक पत्रिका जारी की जानी चाहिए.श्री दाभोलकर ने इस विषय पर श्री हरि सीताराम दीक्षित की सलाह ली. इस तरह छह महीने बीत चुके थे और साई लीला के काम में कोई भी प्रगति नहीं थी . लेकिन हम निराश नहीं थे. एक दिन, श्री दीक्षित और श्री दाभोलकर मेरे घर आये साईबाबा की लीलाओ को प्रकाशित करने के सन्दर्भ में चर्चा करने . दूसरी और से भी सोचे तो जो भी अनुभव हमें साई बाबा के पवित्र चरणों से प्राप्त हुए वो मिथ्या नहीं थे. बाबा की लीला प्रकाशित करने की सोच उनके भक्तो के लिए आश्चर्यजनक हो, लेकिन वास्तव में यह बोल पाठकों के दिलों की गहरायिओं को छु लेंगे और उनमे आत्मविश्वास को जागृत करेंगे . इस बात को ध्यान में रखते हुए, हमने इस मामले में आगे कदम बढाने का फैसला किया और इस तरह के एक मासिक पत्रिका के रूप में साई बाबा की लीला प्रकाशित कर दीं.
पहले ९६० प्रतियां इतनी लोकप्रिय हुई कि और १००० प्रतियां छपवाई गयी . अब साई बाबा के मीठे अनुभवों और लीलाए प्रकाशित कि गयी थी . जब तक श्री दीक्षित जीवित थे , वह उनकी तरफ से अनुभवों की व्यक्तिगत रूप से पुष्टि करने के बाद ही उन्हें प्रकाशित किया करते थे . लेकिन उनकी मृत्यु के बाद अब पत्रिका के प्रकाशन में देरी होने लगी हैं. श्री दाभोलकर की मृत्यु के बाद काम एक साल पीछे चल रहा था
इन सभी कारणों से , साई लीला की सदस्यता ९६० से घटकर ४०० तक हो गयी थी . पत्रिका की पूरी जिम्मेदारी अब मेरे बूढ़े कंधों पर थी मैं प्रसिद्धि से दूर रहना चाहता था और मुझे इन सब से दूर रहकर काम करने की आदत थी. सतर साल की उम्र में भी मुझे मेरे परिवार के खर्च को पूरा करने के लिए काम करना पड़ रहा था, साईं लीला और इसके अलावा शिर्डी साईबाबा संस्थान के कोषाध्यक्ष का काम मुझे दिया गया था. मैं साईंबाबा का आभारी हूँ की उनकी कृपा से सारा काम आसानी से हो रहा था. ये साईबाबा की असीम कृपा के फलस्वरूप ही मुज जैसे गरीब और अज्ञानी व्यक्ति को स्वीकार किया गया है. आज मेरे विस्तार से लिखने के पीछे का कारण यह है की साईलीला के पाठको की गणना अब २६० तक पहुच गयी हे जो की शुरआत के मुकाबले में बहुत ही कम है. इसलिए मेरा पाठको से अनुरोध है की हर घर में साईलील पत्रिका की सदस्यता हो.स्रोत: गुजराती पत्रिका "द्वारकामाई" से अनुवादित.
Wednesday, October 26, 2011
सब दिन न रहे एक समान, चिंता त्यागो जपो साईं नाम
ॐ साईं राम,
"सब दिन न रहे एक समान,
चिंता त्यागो जपो साईं नाम"
ॐ साईं नमो नम: श्री सद्गुरु साईं नमो नम:
जय जय साईं नमो नम: श्री सद्गुरु साईं नमो नम:
साईं साईं जपो जी,
"सब दिन न रहे एक समान,
चिंता त्यागो जपो साईं नाम"
ॐ साईं नमो नम: श्री सद्गुरु साईं नमो नम:
जय जय साईं नमो नम: श्री सद्गुरु साईं नमो नम:
साईं साईं जपो जी,
Wednesday, October 19, 2011
- ANIMATED MOVIE BASED ON THE LIFE OF SHIRDI SAI BABA -
- ANIMATED MOVIE BASED ON THE LIFE OF SHIRDI SAI BABA -
These animated stories & teachings of Sai Baba will foster brotherhood & love among all the sections of the community.
Aushim Khetrapal, Chief founder of the Shirdi Sai Baba Foundation and the movie’s producer,
has rendered his voiceover for a few sequences.
A magical combination of mythology and technology, the movie promises entertainment with dollops of animation and special effects.
Conceived by Shirdi Sai Baba Foundation, this film contains 17 chapters of Shri Sai Satcharitra, as written by Hemadpanth.
The Shirdi Sai Baba Foundation`New Delhi, India is set to release an Animated movie titled 'Shirdi Sai Baba’. This movie, slated to release in January 2012, is the first and only one of its kind animated movie revolving around the key sequences, teachings and incidents in Shirdi Sai Baba's Life as written in 'Shri Sai Satcharitra'. It highlights Sai Baba’s divine power and mystical charm, which still generates thrill among his devotees.
Shirdi Sai Baba is the incarnation of god. He taught equality, brotherhood and love to the society.
Shirdi Sai Baba is the incarnation of god. He taught equality, brotherhood and love to the society.
These animated stories & teachings of Sai Baba will foster brotherhood & love among all the sections of the community.
Aushim Khetrapal, Chief founder of the Shirdi Sai Baba Foundation and the movie’s producer,
has rendered his voiceover for a few sequences.
A magical combination of mythology and technology, the movie promises entertainment with dollops of animation and special effects.
Conceived by Shirdi Sai Baba Foundation, this film contains 17 chapters of Shri Sai Satcharitra, as written by Hemadpanth.
Sri Sai Satcharitra is an Open book to make our lives fruitful
The present moment is indeed a ‘present’ from the Divine. One needs to be with it, relish it, and soak in it. But we are not always in the present, not here – not now; always somewhere else, wondering, speculating, thinking, analyzing, doing everything, but never living in the Present. It is a very subtle, fine moment, a fleeting one.
You have to be very cautious, very attentive; only then you may successfully catch it or else you’ll simply miss it.
Life as it is happening now, learn to appreciate it, rejoice in it. See the present moment which is happening around you: the blue sky, giggles of children, sounds of birds, floating clouds and if what you can hear is just noise then even this noise will become rhythmic, just be in the moment.
Tuesday, October 18, 2011
Friday, October 14, 2011
The Chanting of Baba's Name Alone Rids us of Our Mental Tensions
The Chanting of Baba's Name Alone
Rids us of Our Mental Tensions
Rids us of Our Mental Tensions
God created illusion (Maya) before the advent of mankind. If we surrender to that "Maya" and keep pointing our own and others mistakes, fears and doubts surround us. By this, we slowly lose self-confidence and degenerate into persons of cowardice. Even the great sages have been overpowered by the power of illusion. Baba explained that, yielding to the sound, touch, image and odour is only due to Maya's influence.
Baba maintained that when He Himself is subjected to Maya's play, how it would be possible for commoners to escape from it. As long as humans are swayed by Maya, keeping away from God they are caught up in the Karmic cage of birth-death-rebirth.Mind gets tired under the pressure of stress and strain. It feels exhausted out of despair and frustration. It boils with the heat of desires. It is further tormented with anxieties and craves for new taste, smell and touch. There is a wonderful means of controlling the mind.
That is the fervent chanting of God's name. Baba showed us several methods of reaching Him. By following the path of devotion sincerely and conducting Bhajans, prayer or chanting of Baba's name, one can break the spell of Maya. The touch of Baba's love relaxes all tensions. It finally makes us bathe in the sea of serenity of Sai's love and His teachings.
That is the fervent chanting of God's name. Baba showed us several methods of reaching Him. By following the path of devotion sincerely and conducting Bhajans, prayer or chanting of Baba's name, one can break the spell of Maya. The touch of Baba's love relaxes all tensions. It finally makes us bathe in the sea of serenity of Sai's love and His teachings.
Saturday, October 8, 2011
Devotees Experiences - के बी चंद ( पूर्व सुबेदार ,भारतीय थल सेना ) ग्राम बालावाला ,देहरादून ,उत्त्राखण्ड्
बाबा की सेवा करने का फ़ल् प्राप्त हुआ
ॐ साई राम ,आज दिनांक ६ अक्टूबर को विजय दशमी का दिन बाबा की महासमाधि के रूप मे भी मनाया जाता है ,और बाबा के चमत्कार स्वरूप बाबा ने मुज्हे भी आज ही के दिन गुल्लर घाटी रोड स्थित साई मन्दिर मे प्रसाद चढ़ाने का अवसर दिया ।बाबा की लीला को मैं कभी नही भुला सकता ,मेरी उम्र इस समय ७२ वर्ष की है ,मेरा घर साई मन्दिर गुल्लर घाटी रोड पर आमने सामने ही है ,दिन भर मैं बाबा के मन्दिर सेवा मे लगा रहता हुं ।
दिनान्क १४ अगस्त को मेरी नयी गाड़ी इन्दिगो यू ऐ ०७ टी ८६२८ मुज्जफ़्फ़र् नगर से चोरी हो गयी ।मेरा छोटा पुत्र लगातार पाँच दिन तक पुलिस के साथ गाड़ी को तलाश करता रहा ,परन्तु गाड़ी का कोई सुराग नही मिल सका ।
१८ अगस्त गुरूवार के दिन मैं तो मन्दिर मे प्रसाद वितरण मे लगा था , मेरा लड़का घर वापस आ गया । अगले दिन १९ अगस्त को जब प्रातः मैं मन्दिर गया मेरे मुख से निकाल पडा की बाबा मैं आपकी इतनी सेवा करता हू मेरी ही गाड़ी चोरी करानी थी ।
मालूम नही बाबा मेरी परिकचह ले रहे थे ,या अपना चमत्कार दिखाना चाहते थे । मैने उसी समय बाबा से ११००/- रुपये का प्रसाद चढ़ाने की मिन्नत की ।मैने प्रसाद वाली डायरी मे देखा तो मेरा नम्बर आज विजय दशमी के दिन था । मैने अपना नाम लिख दिया ।
अगले दिन 20 अगस्त को मेरे फोन पर मुज्हे मुज्जफ़्फ़र् नगर पुलिस थाने से प्रातः सूचना मिली की आपकी गाड़ी मुज्जफ़्फ़र् नगर -दिल्ली रोड पर लवारिस् खड़ी है ,अपनी गाड़ी की पहचान कर ले जाओ ।
इस प्रकार बाबा ने मेरी सेवा भावना परिणाम दिखा कर गाड़ी तो दिला ही दी साथ ही बाबा के प्रति मेरा विश्वास पक्का हो गया ।मै अपने जीवन भर बाबा के इस चमत्कार को कभी नही भुला सकता । अब इसी विश्वास को और पक्का करने हेतु मैं १० अक्तूबर बाबा के दर्शन करने शिरडी जा रहा हुं ।
बाबा इस प्रकार सबकी सहायता करते हैं जो भक्त उन पर पूर्ण विश्वास करते हैं । शायद बाबा ने अपने भक्तो को इसी लिये श्रद्धा और सबुरी का मूल मंत्र दिया । के बी चंद ( पूर्व सुबेदार ,भारतीय थल सेना ) ग्राम बालावाला ,देहरादून ,उत्त्राखण्ड् ।
बाबा की सेवा करने का फ़ल् प्राप्त हुआ
Wednesday, October 5, 2011
Why do we read Sai Satcharitha?
Lessons being taught on good deeds, good manners remain appreciable irrespective of the person giving the lecture or reading holy books etc. Just to make sure that serving poor or satisfying hunger are means of serving god, you need not read satcharithra. These good things are minimal acknowledgements to be made by “our selves”. But why do we read satcharithra? It is a great book that discusses everything so that one can renew himself and turn out to be a better person. We are grown enough that we can make our own decisions live independently know what is good or bad. Again another question arises. If we know all the good happenings then what is the need for us to read about some old sayings? If anyone asks me this question I would definitely go “for” the person’s views. Now I will shoot a query for these people “How many good things have you been practicing? Believe me many of them do not have a valid answer.
So what is this Satcharithra about? Everyone think for a moment. Does reading the precious writing of Hemadpant once is enough to know the essence of the book? Definitely the answer is no. But a single reading of the book will make you realize what we are missing – the purpose of our lives – Atmasakshatkara
Continue to read the book. Once, twice, thrice or innumerable times. It does not matter. While you read, at one point all the senses, mind, heart gets focused and then you reach what you call is the swayam tripthi or atmasantripthi – where we satisfy the inner deity within ourselves. Later on you transform to a better person and strive for the reason you were born. That is when you completely understand the beloved book.
(Contributed by Sai devotee)
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